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कहानी उस जगह की जहां भगवान का निवास हैं? भाग-०२

       दोस्तों हम अब आईएनएस गरुड़ (कोच्ची)  में सब इकट्ठा हुए है! अब रात के तकरीबन दस बज 15  मी. हो रहे है! बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं, हमारे लिए कुछ और सामान जैसे रबर बोट, ओबीएम,लाइफ जैकेट,लाइफ बॉय वायुसेना के फ्लाइट में विजयवाड़ा (आंध्रपरदेश) से आया हैं, इसको अभी सभी टीमों में दिया जाएगा, उसके बाद टीमें रवाना होंगी!
       अब भी बारिश हो रही हैं, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ हैं, थोड़ी–थोड़ी जगह लाईट जल रही हैं. कोच्चि का तो हवाईअड्डा बंद है, और बहुत नुकसान भी हुआ है, सभी टीमों के लिए अलग-अलग जगह पर भेजने की, तैयारी चल रही है! जादा तो उसी जगह भेजा जाएगा जहा जादा जरुरत है! बोला जा रहा है कि, यहां और भी बारिश होने की संभावना हैं, अब हमें हमारा सामान लेकर रवाना होने का आदेश हुआ, हमारी टीम पूरा सामान लेकर निकल गई, रात का समय था, हल्की– हल्की  बारिश हो रही थी, रस्ते में जगह जगह पानी भरा हुआ नजर आ रहा था, कुछ जगह पर पेड़ भी पड़े हुए थे! रात के लगभग दो बजकर 45 मी. में हम कोच्चि से दूर अलुवा (तहसील) में पहुंच गए! अलुवा शहर इस समय गहरी निंद में सो रहा था! हमें यहां (️ U.C. COLLAGE ALUVA) यूनियन क्रिस्चियन कॉलेज,अलूवा  में छोड़ दिया, कुछ स्थानीय लोग (जो आपदा प्रबन्धन के लिए जिल्हाधिकारी द्वारा नियुक्त) हमें एक बस और एक ट्रक के साथ छोड़ गए! कॉलेज तो बहुत बड़ा था, रात का समय था हमारे साथ और एक टिम थी, लेकिन उनको या हमें हो सकता है सुबह कहीं और भेज सकते है! अब यहां रात में बारिश तो थमी सी लग रही थीं! अब सुबह होने का इंतजार कर रहे थे,  निंद तो बिलकुल नहीं आ रही थी, मै तो करवट बदल–बदल के सोने की कोशिश कर रहा था! लेकिन समय हमारी परीक्षा ले रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा था! यहां तो मच्छरों ने आतंक मचा रखा था!  यह महाविद्याल बहुत पुराना है, इसकी स्थापना ई.स.1921 में हुई हैं! इससे पता लगा सकते है कितना पुराना हैं! लेकिन इमारतों का निर्माण मजबूत था! यह महाविद्याल उचे स्थान पर स्थित था! इसी महाविद्यालय में एनसीसी कैडेट्स भी थे!
        सुबह पंछीयो के किल-बिल के साथ सुबह हुई, सुबह जब उठा और चारो तरफ देखा तो, बहुत बड़े–बड़े नारियल के पेड़ थे! एकदम चारो तरफ से हरियाली ही हरियाली थीं! सुबह हमने नास्ता किया, अब महाविद्यालय खुलने का समय हुआ था! उससे पहले हमारी में से एक टिम दूसरी जगह तैनात की गई, वह टीम निकल गई! उनकी रहने की व्यवस्था किसी सरकारी स्कूल में की गई थी! हमें बताया गया कि आप लोग रात में तैयार रहना! अब तो थूप भी अच्छी निकली थीं! एसा नहीं लग रहा था कि अब यहां बारिश होगी! लेकिन मौसम विभाग की जानकारी के अनुसार बारिश की संभावना अधिक जोरों पर थी| 
           आज तो 11 अगस्त हैं! उससे पहले हमारे एक जवान कनहैय लाल ने अपनी जान जोखिम में डालकर एक बच्चे और उसके परिवार की बचाई थी | तो लोगो को हमारे से बहुत विश्वास था! अब हमारी पहिली रात की तैनाती आलुवा पैलेस, गवर्नमेंट गेस्ट हाउस, डिपार्टमेन्ट ऑफ़ टूरिज्म केरल में हुई हुईं थीं!
('अलुवा' भारतीय राज्य केरल स्थित कोच्चि महानगर पालिका, एरणाकुलम जिला में एक नगरीय निकाय है। यह कोच्चि से लगभग १५ किमी की दूरी पर है। पेरियार नदी के तट पर स्थित अलुवा राज्य का एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है!  सांभार:–विकिपीडिया)
       पेरियार नदी के किनारे बसा हुआ यह गेस्ट हाउस बहुत शानदार हैं, नदी के किनारे होने से हल्की–हल्की हवा से और भी शानदार लगता हैं! अलग–अलग पेड़ पौधे हैं, ऊचे–ऊचे नारियल इसकी शोभा और भी बढ़ा रहे हैं! आज की रात तो ठीक ठाक थी! अब सुबह हो गई थी, हम अब कॉलेज में निकल गए थे! आज का दिन तो ठीक-ठाक निकल गया था कभी इंतजार था कल के दिन का मौसम विभाग की जानकारी यही बारिश बहुत हो सकती है और उस शहर के ऊपर डैम था उस दिन के ऊपर भी बारिश होने की ज्यादा संभावना थी इसलिए हमें चौकन्ना रहने के आदेश दिए थे। जिलाधिकारी और अन्य अधिकारी  बार-बार आकर नदी का पानी चेक कर रहे थे। इससे हमें यह तो अंदाजा हो गया था, कि कुछ बड़ा होने वाला है। या बारिश की संभावनाा ज्यादा है, लोगों को शहर से निकलना भी जारी था।
     आज की तारीख 12 हैं!  आज के दिन हमें दोपहर को फिर से गेस्ट हाउस में तैनात होना है! गेस्ट हाउस में हम हर रोज़ सुबह,शाम,दोपहर को, बोट से नदी के उस पार और भगवान शंकर के मंदिर तक जाकर आते थे! वहा नजर रखनी पड़ती थीं, कि कोई मंदिर की तरफ जाने की कोशिश तो नहीं कर रहा है! क्यों की मंदिर के पास पाणी बहुत था, मंदिर चारो और पानी से भरा हुआ था! हम जिस गेस्ट हाउस में तैनात थे, उस गेस्ट हाउस के बगल में ही नए गेस्ट हाउस का निर्माण हुआ है! वहा सभी मीडिया के लोग अपना। कैमेरा नदी और मंदिर के तरफ लगाकर बैठे थे! कुछ कुछ मीडिया वाले तो वहा से लाईव रिपोर्टिंग कर रहे थे! नदी के पानी का स्तर जिलाधिकारी के निगरानी में उनके कार्यालय के लोग हर घंटे पानी के स्तर पन नजर रखे हुए थे! उनको हिंदी नहीं अती थीं,और हमें मलयालम नहीं आती थी! हमारी नजर तो हर समय नदी के तरफ ही थीं! नदी का पाणी तो कभी कम होता था, तो कभी जादा होता था, लेकिन कल से आज पाणी का स्तर कम हुआ था! हमारी आज की तैनाती यहां दिन मै थीं और हमें बोला था कि आपकी टीम 13 और 14 अगस्त रात को यहां तैनात रहेंगी! अब तो शाम हुई थी आज का कर्तव्य पूरा कर हम हमारे स्थान पर निकल गए थे!
        आज की तारीख 13 की सुबह हुईं हैं, आज भी कोई बारिश संभावना नहीं हैं! अब तो कॉलेज में भी क्लास शुरू हुई हैं! आज दोपहर कॉलेज से हमें ‘राष्ट्रीय पशुसंवर्धन प्रशासन व व्यवस्थापन’ केरल अलुवा (निफाम)(National Institute Of Fisheries Administration And Management Keral (NIFAM) के गेस्ट हाउस जानें का आदेश हुआ था! आज तो लग रहा था, की बारिश खुल गई हैं! आज सूरज ने भी सुबह से अपना दर्शन दिया था! हम दोपहर महाविद्यालय से NIFAM में चले गए! वहां जाने के बाद हमें अलग–अलग रूम दिया, वह गेस्ट हाऊस था, हमें दूसरे मजले पर जगह मिली थीं, हमने बैग और सामान रखकर चाय पीने के लिए सामने थोड़ासा दूर एक छोटीसी हॉटेल में गए! मैं और मेरे साथ मेरे और तीन दोस्त भी थे, हम जब से यहां आए थे तब से सिर्फ मोटा चावल सांबर खा रहे थे, पहले जो बारिश हुई थीं उससे भी थोड़ा बहुत नुकसान होने की वजह से अभी लोग उस तकलीफ से बाहर नहीं आए थे! हमने चाय पीने से अच्छा सोचा की एक–एक डोसा खा लेते हैं! दो–तीन दिन से ठीक से खाना भी नहीं खाए थे, इसलिए हमने यह फैसला लिया था! हमें खाना खाने के बाद फिर रात को वही अलुवा नदी के किनारे बना हुआ सरकारी गेस्ट हाउस में जाना था! अब ऐसा नहीं लग रहा था, की यहां बारिश होगी, मौसम एकदम मस्त था! आकाश निरंभ्र था,बादल बिलकुल नहीं थे! हम रात का खाना खाकर फिर हम कर्तव्य पर निकल गए! हमने जो हमारी दूसरी टिम वहा सुबह से तैनात थीं उनको छोड़ दिया था! नदी का पानी भी बहुत कम हुआ था! रात सबकी ड्यूटी बारी–बारी से लगाई गई थी! लेकिन हम जब न्यूज में देख रहे थे! की केरल में 14 अगस्त से लेकर 19 अगस्त तक अलर्ट दिया, बहुत जादा बारिश होने की, संभावना बताई गई है, लेकिन मौसम को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था!
       आज सुबह 14 अगस्त का दिन निकल आया था लेकिन अभी सूरज भगवान के आज दर्शन नहीं हुए थे! आज हम सभी लोग बहुत खुश थे क्यों की कल 15 अगस्त था! इसलिए मन ही मन ख़ुशी मना रहे थे! हम तो कहीं भी रहे झंडे को सलामी देने के लिए कहीं भी तैयार रहते है! लेकिन,आज मौसम विभाग के चेतावनी की या आ रही थी! अब हम दोपहर को ही फिर वापस गेस्ट हाउस आए थे! हल्की–हल्की ठंडी–ठंडी  हवा आने लगी थी, ऐसा लग रहा था कि कुछ देर में बारिश शुरू होने वाली, है! हमने नदी से रबर बोट बाहर निकालकर दूसरे टिम को उनका बोट वापस दिया, ओर हमारी रबर बोट निकालकर फुला दी! लेकिन अब बारिश शुरू हुई थी, दूसरी टिम को जल्दी से जल्दी यहां से जाने के लिए कहां गया था! उनको शहर के दूसरी जगह भेजा जा रहा था! हमने बारिश में ही काम करना शुरू किया, सभी लोग बारिश में भीग गए थे, इसी बीच और तेज बारिश शुरु हुई, एसा लग रहा था, की अगर बारिश में दो मिनिट भी खड़ा रहे तो, अपना शरीर कुछ देर के लिए सुन्न पड़ जाएगा, इतने मोटे–मोटे पाणी के बूंद गिर रहे थें! मैंने तो कभी इतनी जबरदस्त बारिश नहीं देखी थी! हा लेकिन चेन्नई में २०१५ की बढ़ा में मैंने जरूर काम किया था, लेकिन वहां भी इतनी खतरनाक मोटे मोटे बूंद वाली बारिश नहीं थी!  बारिश के साथ साथ हवा भी आ रही थी! बारिश के वज़ह से आदमी 10 कदम दूर तक दिखाई देना मुश्किल हुआ था! जैसे कोहरा पड़ा हो, बादल ने आसमान में सूरज को ढक दिया, एसा लग रहा था कि कुछ देर में अंधेरा होने वाला है!
      अब तो इसी बीच बारिश में ही दूसरी टिम यहां से रवाना हो गई थी! अब हमें भी लग रहा था कि अब हमें भी कहीं जाना होगा? अब...तो...बारिश में ही हमारे लिए खाना आया था, खाने में वही हर रोज़ का मोटा वाला (केरल का सुप्रसिद्ध चावल) चावल दाल और सांबर, अब तो रोटी खाने के लिए भी बहुत दिन हुए थे! लेकिन भूक लगने की वजह से,चावल भी अच्छे लगने लगा था! आज तो जल्दी ही अंधेरा हो गया था! शाम को भी बारिश शुरू ही थीं! अब मैं तो मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था! कुछ देर के लिए तो बारिश बंद होने दे भगवान........!!!
        कल तो 15 अगस्त हैं! कल के लिए तो बारिश बंद होने दो! लेकिन भगवान भी अपने जिद पे अडे हुए थे! अब रात के 8:20 मी. बिजली भी चली गई थी! बारिश इतनी आ रही थी कि, गेस्ट हाऊस के छत का पाणी पाईप में नहीं समा रहा था! "आप इससे अंदाजा लगा सकते है कि बारिश कैसी हो रही होगी"! सुबह मेरी ड्यूटी 04 बजे से 06 तक था! मै जब उठा तो बारिश हो रही थी! मैने जब नदी की तरफ देखा तो नदी तो उफान पर बह रही थीं! पानी नदी से शहर की तरफ रुख करने लगा था! अब बिजली तो रात से ही नहीं थी! चारो तरफ अंधेरा छाया हुआ था! मैंने देखा कि गेस्ट हाउस में पानी घुसने के लिए सिर्फ चार सीढ़ियां बाकी थीं! नदी की तरफ देखने से ही डर लगने लगा था! बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी! हम सब यहां से निकलने के लिए तैयार हुए थे! लेकिन उससे पहले आज15 अगस्त था,हमारा स्वतंत्रता दिवस पर हमारे टिम कमांडर साहब इंस्पेक्टर श्री.गणेश प्रसाद सर ने हमारे तिरंगा झंडा को देख कर, कहा कि जवानों देखो इतनी बारिश में भी हमारा तिरंगा शान से लहरा रहा है! साहब के साथ हम सभी कमर तक पानी में ही सावधान खड़े होकर राष्ट्रगीत गाकर झंडे को अभिवादन कर रहे थे! दूर खड़े लोग भी हमें देखर झंडे को अभिवादन करके राष्ट्रगीत गा रहे थें!
        लेकिन नदी का पानी एका–एक रात में ही बढ़ जाने से नुकसान होना स्वाभाविक था! क्यों की लोगो को घर से बाहर निकालने का तो मोका ही नहीं मिला था! हम गेस्ट हाउस से बाहर निकालने की लिए निकले तो अचानक से बहुत जादा पानी भर गया था! अब तो हमारी गाडियां भी निकलना मुश्किल हो गया था! हम जहा से गाड़ी निकालने कि कोशिश कर रहे थे, वहा कुछ ही देर में लगभग गले के बराबर पाणी भर गया था! वहा से गाड़ी निकलना भी मुश्किल हुआ था! लेकिन हमारे  ड्रायव्हर की कमाल से कैसे भी करके बस तो निकल गई थीं! लेकिन..... उसी समय ट्रक नहीं निकल पा रहा था, ट्रक में सामान जादा था! जब ट्रक पाच फिट पाणी में बंद हो गया था! अब तो किसी भी हालात में ट्रक निकालना जरूरी ही था! नहीं तो पानी का स्तर बढ़ते ही जा रहा था! बारिश बहुत जादा हो रहीं थीं! अब सभी लोग मिलकर बारिश में ही ट्रक को धक्का लगाकर बाहर लाने की कोशिश की जा रही थीं! सभी लोग धक्का लगा रहे थे! अब पानी तो छाती तक बढ़ गया था लेकिन, फिर भी हमारे साथी पीछे हटे नहीं,क्योंकि हमारे लिए ट्रक बाहर निकलना बहुत जरूरी था! क्यों कि हमारा पूरा सामान उसमें ही था! हमने लगभग दो किलोमिटर ट्रक धक्का लगाकर ले गए! कहीं–कहीं तो पाणी का स्तर घुटने तक ही था!
     अब....... हमने कैसे–कैसे करके गाडी को बाहर निकाल तो दिया था, लेकीन गाडी शुरू नही हो रही थी! लेकीन कैसे भी लोगो को मदत तो करणी ही थीं! उसी समय हमें स्थानीय पुलिस ने हमारे कामांडर  बात की और कहा,कि हमारे साथ जल्दी चलो, साहब....!! एक फ्लैट बिलकुल नदी के किनारे है, वहा से लोगो को बाहर निकालना बहुत जरूरी हैं! तब हमारे कमांडर साहब ने बिना वक्त बर्बाद करते, वहासे गाड़ी की व्यवस्था करके, निकल गए! वहां जाने के लिए रास्ता बहुत छोटा था! हम कैसे भी पहुंच गए! हमने वहा की घटना को भाप लिया, और तुरंत अपना बोट निकालकर कुछ ही समय मै तैयार हो गए! लोग तो बहुत जादा इक्कठा होकर, कह रहे थे कि पहले हमारे, लोगोंको पहले निकालो, हमने दोनों बोट निकालकर पाणी में उतार दिया! और वहां से एक एक बोट में उनका जानकारी वाला एक एक आदमी के लिया! क्यों की हमें रास्ता पता नहीं था! जब हम वहां गए तो, देखा कि वह फ्लैट बिलकुल नदी के किनारे था! वहा पानी का बहाव बहुत तेज था! बोट घूमना मुश्किल था, बिजली के खंबे को पकड़ पकड़ कर जाना पड़ रहा था गली बहुत छोटी थी! जब हम फ्लैट में पहुंचे तो, तो देखा कि वहां तो सभी बच्चे और महिला और सामान्य लोग लगभग 150 लोग थे! हमनें सभी को पहले हौसला दिया, की हम आपको सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देंगे! लेकिन बारिश अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही थीं! मूसलधार बारिश हो रही थी! फिर भी हमने वहा से सबसे पहले बीमार, बच्चे, महिला, उनको बाहर निकाला, उनके लिए वहां के स्थानीय मेयर ने खाने कि और  रुग्णवाहिका, और भी गाड़ियों की व्यवस्था की थी! यहां से उनको कैम्प में भेजा जा रहा था! यहां लगभग सभी लोगो को हिंदी आती थीं! सभी लोग व्यापार करने के लिए बाहर से आए हुए थे!
       अब रात के लगभग 8 बजे थे अब ऑपरेशन बंद करना पड़ा क्योंकि चारो और अंधेरा था,अब बिजली नहीं थी! और बारिश भी हो रही थी! हमें पता था कि लोग बहुत मुश्किल में हैं! लेकिन बारिश भी हों रही थी, और रात में काम करना मुश्किल भी था! पाणी का बहाव बहुत जादा था! पास में ही नदी थीं! थोड़ी सी भी गलती होती तो नदी में जाने की, जादा संभावनाएं थी और इससे जान और माल दोनों को हानि हो सकती थी!
        अब यहां आस–पास के सभी लोगो को हमने सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था! आज इतने काम में पता ही नहीं चला कि, शाम कब हुईं! सुबह खाना भी नहीं खाया था! वहीं चावल दोपहर में आया हुआ था, काम में समय नहीं मिलने के कारण अभी खा रहे थे!  भुक तो लगी थीं, उसी चावल को हम बिर्यानी समजकर खा रहे थे! खाना तो बस में बैठकर ही खा रहे थे!
        रात को रहने के लिए जो NIFAM का गेस्ट हाऊस दिया था! वहां जाना मुश्किल था! क्यों की चारों तरफ रोड पर पानी भरा हुआ था! और अलुवा का सरकारी गेस्ट हाउस में पाणी भरा हुआ था! वहा तो जाना खतरे से खाली नहीं था! लेकिन यहां सभी लोगो को, रहने की व्यवस्था की गई थीं! अब रात के तकरीबन 10 बज रहे थे! उसी समय यहां के सरकारी  गेस्ट हाउस से नजदीक ही स्थित ✝️सेंट थॉमस मार्थोमा चर्च (✝️St.Thomas Marhoma Church) के St.Francis High School For Girl में हमारे टिम को रात गुजारने की व्यवस्था की, वहां के सिस्टर ने हमें बहुत मदत की मदत की! हाईस्कूल बहुत बड़ा था! हमारे लिए तीन रूम खाली करके दिए थे! बारिश तो अभिभी हो रही थीं!
       अब हम सुबह होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे! पूरी रात बारिश होने से स्वाभाविक है, कि जल स्तर और बढ़ा था! अब तो लोग डरने लगे थे! दो दिन से बिजली नहीं होने के कारण, घर में पीने का पानी और खाने की चीजें भी कम पड़ने लगी थीं! इसका अहसास हमें भी होने लगा था! बहुत सारे रास्तों में पानी भरा हुआ था!
       आज जैसे ही सुबह हुईं सबसे पहले हमने पास में स्थित लक्ष्मी नर्सिंग होम के सभी मरीजों को बाहर निकालर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था! उसके तुरंत बाद नजदीक के ही Mediheaven Hospital से हमने बहुत बीमार लोगो को और साथ ही साथ हॉस्पिटल के स्टाफ को भी बाहर निकाला था! यहां तो ऐसे एक भी महिला थी, जिसने कल ही अपने बच्चे को जन्म दिया था! ऐसे लोगो को हॉस्पिटल में देखकर हमें तो बहुत दुख होता था! लगभग यहां से हमने 45 पेशेंट को निकाला था जो यह किसी और के सहारे के बिना चाल नहीं पा रहे थे! हमें उनको बाहर निकालना बहुत मुश्किल होता था! क्योंकि की हॉस्पिटल के बाहर लगभग दस फीट पानी था! गेट छोटा था बोट वहासे घूमना मुश्किल था! फिर हम कोशिश कर उनको बाहर निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचना ही हमारा लक्ष्य था! हमारी हमेशा कोशिश रही है, की जरूरतमंद लोगो को एनडीआरएफ की हरसंभव मदद मिले! हम हमेशा यही कोशिश करते है!  बारिश तो आज भी हो रही थी!
   अब हमने दोनों हॉस्पिटल के सभी लोगो को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था! अब बाकी था घरों में फसें लोगो को बाहर निकालना! हमारी दोनों बोट काम पर लगी हुई थी! फिर हमने हॉस्पिटल के सामने वाली गली में ही स्थित दोनों फ्लैट के लोग मदत के लिए पुकार रहे थे! अब हमने हमारा मोर्चा उनकी तरफ किया था!  लोगो को हमारे से बहुत विश्वास था! लेकिन यहां लोगो को सुरक्षित स्थान पर पहुंचना है तो लगभग तीन से चार किलोमीटर जाना पड़ रहा था! और यहां गाडियां घर का सामान पानी मी प्लॉटिंग कर रहा था! जिसकी वजह से बोट चलना बहुत मुश्किल हो रहा था! कुछ कुछ लोगो के घरों के गेट में लगे हुए मजबूत लोहे के राड से बोट को नुकसान पहुंचने डर लग रहा था! साथ ही गली छोटी और दोनों तरफ से मजबूत नहीं होने की वजह से, पाणी का बहाव बहुत तेज था! हमारे टिम कमांडर साहब ने एक बोट में हम दो लोग जा रहे थें, मुझे और मेरे साथ और एक साथी थे! हम दोनों भी एक ऎसे जगह गए जहां से! एक पूरा परिवार बहकर जा रहा था! वहा गली बहुत ही छोटी थी पाणी का बहाव बहुत तेज था! लोग दूसरी बिल्डिंग से बचाने के भरपूर कोशिश कर रहे थे! वहा के लोगो ने रस्सी फेककर उनको बचाने की भी कोशिश की जा रही थी, उसमे दो लड़कियों के साथ उनके माँ बाप भी थे! लेकिन उनकी दुरी आपस में ज्यादा थी, और इसलिए वह बहने लगे थे! और परिवार बहुत ही डरा हुवा था, उसी बीच सभी जोर-जोर से रो रहे थे! उसी समय मै, और मेरे साथी ने बोट को एक इलेक्ट्रिक खंबे को बाधकर मै तुरंत पाणी में कूद गया! मेरे साथी जे.विजय कुमार मेजर  ने लाइफ लाइन और लाइफ बॉय फेका,  परिवार की दुरी मेरे से सिर्फ लगभग 10 मीटर थीं! लेकिन पाणी का बहाव बहुत तेज़ था! गली छोटी थी लेकिन पानी बहुत गहरा था! पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे! पूरा परिवार बिखरा था! सभी अलग अलग खड़े थे! उनकी छोटी बेटी तो पानी में डूबकर बहकर जाने लगी थीं! उसी समय विजय मेजर ने लेकिन बोट उनके सामने ही, लगाई थी! फिर मैंने और विजय मेजर ने  उनको एक एक करके दीवार के सहारे बोट में चढ़ा दिया! उनकी छोटी लड़की जब बोट में चढ़ी फिर भी पाणी की तरफ देखकर रो रही थी! अगर हम और कुछ देर करते तो वह पूरा परिवार बह जाता! क्योकि वहा  से नदी का अंतर् ज्यादा दूर नहीं था! पूरा परिवार और दूसरे बिल्डिंग में खड़े लोग हमे (NDRF)  देखकर बहुत तारीफ कर रहे थे! हमने अब उनको सुरक्षित स्थान पर पंहुचा दिया था! अब हमने वहासे लगभग दोनों फ्लैट को खाली कर दिया था! बचे हुए लोगो को भी घर से निकलकर सुरक्षित स्थानों पर चलने की हम अपील कर रे थे! कुछ लोग घर से बाहर निकलना नहीं चाह रहे थे! अब शाम के तक़रीबन छह बज गए थे! अंधेरा होने लगा था! बारिश अभीभी हो रही थी! आज दिनभर बारिश हो रही थी, इसलिए पानी स्तर  और नहीं बढ़ गया था! अब रात का समय होने की वजह से हमने काम बंद कर दिया था! आज भी हम वहीं   St.Francis High School For Girl  में ही रुके थे !
      आज १६ अगस्त है! अब हमने यहाँ से पुरे लोगो को बाहर सुरक्षित स्थान पर निकाला हैं;  अब आज सुबह ०६ बजे  हमारे टीम कमांडर साहब ने दो टीमें बनाई ! एक साहब के साथ १० जवान देकर, टीम कमांडर साहब ने १० जवान आपने साथ लिए! सब मिलाकर हम १० लोग थे! अब हमें दो जगह पर एक–एक बोट लेकर जाना था! हम ०६:३० बजे निकल गए! जब हम अलुवा मेट्रो स्टेशन के पास गए उससे आगे थोड़ीही दूर! "बहुत लोग और मीडिया कुछ वालंटियर्स जो अलग–अलग जगह से आए होंगे"! उन्होंने आगे जाने से सभी को मना किया था! भरी पुलिस बल यहां तैनात था! लेकिन हमें उस पार जाना बहुत जरूरी था! क्यों की नदी के उस पार एक परिवार ३–४ दिन से बिना किसी मदत के गुजारा कर रहा था! इस लिए हमारे साहब ने ड्रायव्हर से पूछा क्या आप गाड़ी उस पर के सकते हो? ड्रायव्हर अच्छा था! उसको यहां के रास्ते सब पता थे! उसने कहा सर मै आपको इस पार से उस पार पक्का ले जा सकत हूं! फिर हम वहा से निकल गए! वहां पाणी इतना था, की हमारे गाड़ी के अंदर पानी आ गया था! गाड़ी पाणी के साथ कभी कभी बहने लगती थी! लेकिन ड्रायव्हर अच्छा था! उनको सब रास्ते पता थे! कुछ–कुछ जगह पर रास्ते में डिव्हाइडर टूट कर रास्ते पर आ गए थे! पाणी का बहाव बहुत तेज़ था! वहां रास्ते में कुछ कुछ लोग अपने ट्रक, गाडियां छोड़कर  चले गए थे! उनकी वजह से भी बहुत दिक्कत होती थी! पानी इतना था कि गाड़ी का आगे वाला कांच के आधे तक पाणी आया था! अगर गाड़ी बीच में बंद हो जाती तो हमें निकलना बहुत मुश्किल था! लेकिन हमें उस पार जाना बहुत जरूरी था! लोग फंसे हुए थे उनको किसी भी हालात में हमें आज ही जितनी जल्दी हो सके बाहर निकालना बहुत जरूरी था! यह रास्ता लगभग ०२ से ०३ KM होगा या उससे ज्यादा भी हो सकता है! वहा तो पता ही नहीं चल रहा था, की रोड कोनसा है,और कोनसा नहीं हैं! गाड़ी को बाहर निकालना आसान काम नहीं था! इसका सब क्रेडिट ड्रायव्हर को ही जाता हैं! उसने हिम्मत दिखाई, उसको पता भी था! इसलिए हम निकालने में कामयाब हुए!
       दोस्तो उससे हमने आगे भी बहुत कम किया आज तो पूरा दिन और रात में भी काम किया! मैंने इससे पहले भाग ०१ का प्रसारण किया था! और आपको बोला था कि दूसरे भाग का प्रसारण दिवाली के दिन करूंगा! इसलिए मै आज इसका प्रसारण कर रहा हूं! मुझे आशा है कि आपने जिस तरह मेरे भाग एक को सहारा,पढ़ा उसी तरह आपको भाग दो भी पसंद आयेगा! दोस्तो ये कोई कहानी नहीं है! ये खुद मैंने इस काम को किया हैं! दोस्तो मै खुद एक सिपाही हूं! मै कोई लेखक, कवि या कहानीकार नहीं हूं! इसमें शब्दों में वाक्यों में बहुत गलती हो सकती है! अगर इसमें कोई भी गलती हुईं है, अगर आपको कोई भी भाग, वाक्य या शब्द  आपके मन को ठेस पहुंचाते हैं! तो मुझे संपर्क कीजिए मै उसे हटा दूंगा! या कॉमेंट बॉक्स में लिखिए! 
                आपका आभारी रहूंगा! 
       दोस्तो भाग तीन का प्रसारण भी मै जल्दी करूंगा!

        आप सभी को दिवाली के इस पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं! 

आप सभी का धन्यवाद.....!!!!



आपका दोस्त:–
श्री.बोर्डे बबन उत्तमराव
संपर्क:–९४०४४८१९१४
वॉट्सएप:–७७९८०७२००५
ईमेल:–babanborde@gmail.com








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        भोले नाथाच अस मंदिर जेथे आरतीचे दिवा लावण्यासाठी दररोज चितेच्या अग्नीचा वापर केला जातो. हे मंदिर (भूतनाथ मंदिर कोलकाता) बारा ज्योतिर्लिंगांमध्ये समाविष्ट नाही, परंतु तरीही येथे आरतीची ज्योत चितेच्या लाकडाने प्रज्वलित केली जाते. बाबा भूतनाथ मंदिर कोलकाता       हे रहस्यमय मंदिर (भूतनाथ मंदिर कोलकाता) कोलकाता येथील नीमतल्ला घाटाजवळ आहे जे बाबा भूतनाथ मंदिर किंवा बाबा भूतनाथ म्हणून ओळखले जाते. या मंदिराची स्थापना 300 वर्षांपूर्वी नीमतल्ला स्मशानभूमीत राहणाऱ्या एका अघोरी बाबाने केली होती, असे सांगितले जाते.      ज्या वेळी या मंदिराची स्थापना झाली, त्या वेळी येथे एकच शिवलिंग होते ज्यावर अनेक अघोरी बाबा जल अर्पण करून पूजा करण्यासाठी येत असत आणि काही वेळा आजूबाजूचे लोकही शिवलिंगाला जल अर्पण करण्यासाठी येत असत. असे सांगितल्या जाते.          आता या मंदिरात (भूतनाथ मंदिर कोलकाता) पूजेच्या वेळी चितेच्या अग्नीतून ज्योत का पेटवली जाते याकडे येऊ. वास्तविक, स्मशानभूमीच्या मध्यभागी अघोरी बाबांनी शिवलि...

चांदनी चौक कोलकाता संपूर्ण माहिती, ऐतिहासिक मार्केट चोर मार्केट म्हणून सुद्धा ओळख.

चांदणी चौक मार्केट  व्हिडिओ जुन्या वस्तू चें दुकान          चांदनी चौक हा भारताच्या पश्चिम बंगाल राज्यातील कोलकाता जिल्ह्यातील उत्तर कोलकाता येथील एक परिसर आहे. हे संगणक सॉफ्टवेअर उत्पादने आणि हार्डवेअरच्या सेकंड-हँड आणि स्वस्त बाजारपेठेसाठी प्रसिद्ध आहे चांदणी चौक मार्केट मधील संध्याकाळची गर्दी. इतिहास:- चांदनी चौक, उत्तर कोलकातामधील एक व्यावसायिक केंद्र आणि बाजारपेठ आहे. ही बाजापेठ 1784 च्या सुरुवातीला अस्तित्वात आली. ह्या कलकत्त्याच्या या बाजाराला अनेक नावाने ओळखले जाते जसे की, "चांदनी चौक बाजार", "चांदनी बाजार स्ट्रीट", "चांदनी चौक" किंवा "गोरीमार लेन" असे. कोलकाता महानगरपालिकेच्या नोंदी मधे असे सांगितले आहे की, 1937 पूर्वी, स्थानिक लोक गुरियामा लेन म्हणून या बाजाराला ओळखत आसे. चांदणी चौकचा जुना फोटो (सौ. गुगल)      डब्ल्यू.एच. कैरी (W.H. Carey) असे म्हणतात की, दुकानावर बनवलेल्या छत्र्या आणि छोटे छोटे दुकाने असल्याने आणि याला बंगाली मध्ये चदना म्हणत असल्याने याचे नाव चांदणी मार्केट पडले असावे. कोलकात्याचे सुप्रसिद्ध फिल्म प्रो...